प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले.....
3जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में पिता खंडोजी नेवसे व माता लक्ष्मीबाई के यहां एक कन्या का जन्म हुआ,नाम रखा गया सावित्री बाई।तत्कालीन समाज की परंपराओं के हिसाब से अनपढ़ 9साल की अबोध बच्ची का विवाह 12वर्षीय लड़के ज्योतिबा फुले के साथ कर दिया गया।
ज्योतिबा पढ़ने में बहुत तेज थे और यूरोपीय साहित्य पढ़ने के बाद तत्कालीन समाज व्यवस्था की कुरीतियों को मिटाकर स्वतंत्र मानवतावादी समाज की रचना करना चाहते थे और इसकी शुरुआत अनपढ़ पत्नी सावित्री बाई से की।सावित्री बाई को खुद ने पढ़ाया,हौंसला दिया और साथ लेकर चल पड़े घनघोर अंधेरों को चीरकर उजाले की तरफ।
कहा जाता है कि जब तक विरोध नहीं करोगे तो मूढ़ताएं भी परंपराएं बनकर चलती रहती है और विरोध करने के लिए शिक्षा पहली शर्त होती है।सावित्रीबाई ने 8साल तक कड़ी मेहनत करके शिक्षा हासिल की और 17 साल की उम्र में अर्थात 1848 में पहला महिला विद्यालय खोल दिया।धीरे-धीरे पूना से लेकर मुम्बई तक 18 महिला विद्यालय खोले।
यह उस दौर की बात है जब धर्म भीरु समाज के लोग दलित पुरुषों की पढ़ाई के खिलाफ भी जंग-ए-मैदान में थे।एक पिछड़ी महिला का खुद पढ़ना व एक शिक्षिका के रूप में कार्य करना कितना दुष्कर रहा होगा इसकी हम कल्पना कर सकते है।घर से निकलने से लेकर विद्यालय पहुंचने तक गाली-गलौच की गूंज कानों में गूंजती थी,कई बार पत्थरों की मार से घायल हुई,गोबर गंदगी से कपड़े खराब हुए मगर अपने मिशन से कदमों को डगमगाने नहीं दिया और यही बात उनको देश की प्रथम शिक्षिका होने का सम्मान देती है।
हर क्रांतिकारी मिशनरी में यह गुण होता है कि आसपास घटने वाली हर गलत घटना उसको उद्वेलित करती है।तत्कालीन समाज मे विधवा पुनर्विवाह नहीं होते थे इसलिए सावित्रीबाई ने विधवा विवाह के लिए अभियान चलाया व 1854 में विधवा आश्रम खोला ताकि पीड़ितों को आशियाना मिल सके!
हाड़ तोड़ मेहनत,भुखमरी व इलाज के अभाव में उस समय इंसान की जीवन प्रत्याशा बहुत कम होती है और माँ-बाप छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर दुनियां से रुखसत हो जाते थे।सावित्री बाई ने 1854 में ही ऐसे बच्चों के लिए अनाथ आश्रम खोला व शिक्षा की व्यवस्था की।सावित्री बाई कभी विधवाओं के लिए सावित्री बहन बन जाती तो कभी मासूमों के लिए सावित्री माता।
संघर्ष इंसान को कभी लेखक बना देता है तो कभी कवि।बहुत कम लोगों को मालूम है कि सावित्रीबाई फुले एक अच्छी कवियत्री भी थी।उन्होंने "काव्य फूले" व "बावनकशी सुबोधरत्नाकर" नामक दो काव्य संग्रह भी लिखे है।
24 सितंबर 1873 में महात्मा ज्योतिबा फूले ने "सत्यशोधक समाज"की स्थापना की जिसकी महिला विभाग की प्रमुख सावित्री बनी।17साल तक लगातार ज्योतिबा फूले व सावित्री बाई ने मिलकर समाज के लिए कार्य किया।18 नवंबर 1890 में ज्योतिबा फूले के परिनिर्वाण के बाद सारा कार्यभार सावित्रीबाई के कंधों पर आ गया।
कहते है कि जिनका बचपन गुरबत देखकर गुजरा व पूरा जीवन लोगों की सेवा करते हुए गुजरा हो उनका अंतिम समय भी सेवा करते-करते गुजरता है।1897 में पूना में भयंकर प्लेग की महामारी फैली थी और प्लेग रोगियों की सेवा करते-करते महान शिक्षिका खुद प्लेग की चपेट में आ गई और 10मार्च 1897 को अंतिम सांस ली।
आज सावित्रीबाई फूले का जीवन संघर्ष व सेवाभाव हमारा प्रेरणास्रोत है,मार्गदर्शक है।महान शिक्षिका,महान बहन,महान माता की जयंती पर नमन करता हूँ। कोटि कोटि वंदन 💐💐💐
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